Monday, October 27, 2014

वर्ल्ड आयुर्वेद कांग्रेस आरोग्य एक्सपो २०१४

नमस्कार मित्रों

वर्ल्ड आयुर्वेद कांग्रेस द्वारा आयोजित आरोग्य एक्सपो २०१४  में आप सभी सादर आमंत्रित है।
जिसका उद्घाटन स्वयं प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी करेंगे।

दिनांक : ०६ -०९ नवम्बर २०१४
स्थान : प्रगति मैदान

अधिक जानकारी के लिए निचे दिए लिंक पर जाएं।
http://www.ayurworld.org

Saturday, July 26, 2014

शुद्ध या अशुद्ध शहद की पहचान

शुद्ध या अशुद्ध शहद की पहचान


असली मधु वही है, जो शीशी से प्लेट में टपकाने पर सांप की कुंडली जैसा गिरता हो। नकली मधु प्लेट में गिरते ही फैल जाता है।

किसी लकड़ी पर एक बूंद शहद टपकाकर उसे माचिस की तीली जलाकर दिखाने पर वह जलने लगे तो उसे असली शहद समझें।

असली मधु पारदर्शी होता है। कुत्ता उसे चाटता नहीं है, असली मधु में सुगंध होता है। गर्मी पाकर वह पिघल जाता है और ठंडक पाकर जम जाता है। नया शहद कफनाशक और दस्तावर होता है। एक से दो वर्ष पुराना शहद चर्बी कम करता है और पाचक होता है।

प्रायः ऐसा मानते हैं कि शुद्ध शहद सर्दी में भी नहीं जमता है, परन्तु शहद का जमना या नहीं जमना शुद्धता की पहचान नहीं है। क्योंकि शुद्ध शहद भी जमता है।

Friday, June 27, 2014

गहरी सुखभरी नींद ऐसे लें 熟睡のために

गहरी सुखभरी नींद ऐसे लें 
熟睡のために

अनिद्रा आज का सबसे बड़ा रोग है, वस्तुतः युवा के लिए छः घंटे की नींद पर्याप्त होती है। बच्चों के लिए आठ घंटे और वृद्धों को चार से छः घंटे की नींद की आवश्यकता होती है।

現時代は不眠症が一番の病気です。若者は6時間ぐらいの睡眠時間が充分です。
子供が8時間とお年寄りは4ー6時間の睡眠時間が必要です。


प्राकृतिक उपचार

प्राकृतिक उपचार से अनिद्रा रोग समूल नष्ट हो जाता है, रोगी पर कोई दुष्प्रभाव भी नहीं पड़ता।

१. एक चम्मच प्याज के रस में एक चम्मच शहद मिलाकर चाटें। यह औषधि रात को सोने से पहले लें।

२. रात को सोने से पहले नियमित सरसों या तिल के तेल से पांच मिनट पैर के तलवों की मालिश करें, इससे थकान दूर होती है और नींद अच्छी आती है।

३. पपीता एक बहुत ही गुणकारी और स्वादिष्ट फल है। अनिद्रा के रोगी नियमित रूप से पपीता खायें, उसका रस पीयें और कच्चे पपीते की सब्जी बनाकर खायें तो उन्हें अनिद्रा की शिकायत नहीं होगी।

४. सौंफ अनिद्रा रोग की बेहतर औषधि है। रात को सोने से पूर्व १० ग्राम सौंफ एक कप पानी में उबाल-छानकर पियें।

६. सेब का मुरब्बा अनिद्रा रोग को शांत कर गहरी नींद लाता है - रात को भोजन के बाद नियमित रूप से खाने वालों को रोग से मुक्ति मिलती है।

自然的な治療

自然的な治療で不眠症が治り、患者に副作用もありません。
下記の色々なやり方がありますが、全部やる必要は有りません。

1. 1スプーン玉ねぎのジュースに1スプーンハチミツを混ぜてなめます。毎日寝る前にやります。

2. 夜寝る前にマスタード油かごま油で足下の裏に5分ぐらいマッサージをする。これも寝る直前に最高です。

3. パパイヤはおいしくてすごいオーシャディです。不眠症の患者さんはパパイヤを定期的に食べたり、パパイヤのジュースを飲んだり、未熟のカレーを食べると熟睡を得るようになります。

4. ソーンフは不眠症にすごくききます。寝る前に10グラムソーンフを1杯カップに入れ、ボイルしてからフィルタして飲みます。

5. リンゴのコンポートは不眠症を冷静にし、熟睡の為に手伝います。毎日夕食後食べると熟睡を得るようになります。

これから熟睡をもらえるように試してみましょう!

Monday, June 23, 2014

दूध से दाढ़ी बनाने और नहाने का उत्तम तरीका

दूध से दाढ़ी बनाने और नहाने का उत्तम तरीका 


दूध से दाढ़ी बनाने और नहाने सुनकर शायद आपको अजीब लगे, पर है यह ज़ोरदार तरीका। दूध से दाढ़ी बनाने का सामान्य तरीका यह है कि पहले आप हलके गुनगुने पानी से चेहरा भिगो लीजिए, इसके बाद थोड़ा सा कच्चा दूध लेकर चेहरे पर अच्छी तरह मलिए। अब रेज़र चलाइये, एकदम चिकनी दाढ़ी बनेगी। दाढ़ी बनाने के बाद क्रीम वग़ैरह लगाने की ज़रूरत एकदम समाप्त हो जाती है, क्योंकि कच्चा दूध अव्वल दर्ज़े का 'क्लींजिंग एजेंट' है। कच्चे दूध के इस्तेमाल से चेहरे की स्निग्धता और सौंदर्य में वृद्धि होगी, सो अलग। 

अब आइए, दूध से स्नान करने का तरीका जानिए। यह तरीका भी एकदम आसान है। एक नींबू एक छोटी कटोरी भर कच्चे दूध में निचोड़ दीजिए, बस अच्छे से अच्छे से भी बेहतर स्नान सामग्री तैयार है। नींबू निचोड़ने के बाद जब दूध फट जाए तो एक साफ़ सूती कपड़े का टुकड़ा इसमें भिगोकर शरीर पर अच्छी तरह रगड़ते हुए फेरिए और स्नान कर लीजिए। यह है आपका एकदम - सौ प्रतिशत सम्पूर्ण स्नान !

इस तरह आप साबुनों के नुकसानदेह मायाजाल से तो बचेंगे ही, तमाम तरह के चर्मरोगों से भी निजाद मिलेगा। 

स्रोत:
स्वदेशी चिकित्सा - गंभीर रोगों की घरेलु चिकित्सा एवं सौंदर्य वर्धक घरेलू नुस्खे (भाग - ४) 
संकलन एवं संपादन: राजीव दिक्षित

नोट: इस पुस्तक को खरीदने के लिए राजीव दिक्षित मेमोरियल स्वदेशी उत्थान संस्था से संपर्क करें। 

Wednesday, June 18, 2014

आवासीय एडवांस योग शिविर (रोगियों हेतु शिविर)  上級レベルヨーガ シヴィルが開催されます

लम्बे अंतराल के बाद परम पूज्य स्वामी रामदेव जी इंसान हित में मोटापा, मधुमेह, उच्च रक्तचाप, हृदय रोग, अर्थराइटिस, कमर दर्द, उदार रोग चरम रोग, ऑटोइम्यून डिज़ीज, अवसाद आदि के रोगियों के लिए आवासीय एडवांस योग शिविर (रोगियों हेतु शिविर) का आयोजन किया जा रहा है।

久しぶりにスワミ ラームデヴの上級レベルヨーガ シヴィルが開催されることになりました。

下記の病気がある方におすすめです。
肥満
糖尿病
高血圧
心臓病
関節炎
腰痛
皮膚病
自己免疫疾患



दिनांक : 24 से 30 जून
स्थान : पतंजलि योगपीठ हरिद्वार, भारत
अनिवार्य अग्रिम पंजीकरण

अधिक जानकारी हेतु संपर्क करे :
दूरभाष न :

भारत
+91-(0)1334 – 240008
+91-(0)1334 – 244107
+91-(0)1334 – 246737



जापान:
संपर्क व्यक्ति : आशुतोष सिंह
मोबाइल न : +81-80-3246-4486
विपत्र : prakrti.panchtatv@gmail.com
वेबसाइट : http://prakrtipanchtatv.blogspot.in/
फेसबुक पेज: https://www.facebook.com/prakrtipanchtatv
ट्विटर: https://twitter.com/prakrtipnchtatv

ヨーガ期間:6月24日〜6月30日
場所: パタンジャリ ヨーグピート ハリドワール、インド
*予約必要

詳しくは下記にご連絡ください。
インド:
+91-(0)1334 – 240008
+91-(0)1334 – 244107
+91-(0)1334 – 246737

日本:
責任者 : シン・アシュトシュ

電話 : +81-80-3246-4486
メール: prakrti.panchtatv@gmail.com
ウェブ : http://prakrtipanchtatv.blogspot.in/

Monday, June 16, 2014

प्रकृति पंचतत्व के ब्लॉग को पसंद करने के लिए बहुत धन्यवाद। プラクリティパンチタトヴのブログをお読みいただきありがとうございます。

日本語下へ

नमस्कार मित्रों

आप सभी का प्रकृति पंचतत्व के ब्लॉग को पसंद करने के लिए बहुत धन्यवाद। 

आज १६ जून को प्रकृति पंचतत्व ब्लॉग को आरम्भ किये हुए पूरे १ मास हो गया। 

और इसी के साथ प्रकृति फेसबुक पेज को पसंद करने वालों की संख्या भी १०१ हो गई।

आप सभी के अपार स्नेह और सहयोग के लिए बहुत अभिनन्दन।

हम आशा करते है की हमारे भारत का आयुर्वेद, योग एवं प्रायाणाम का अनमोल ज्ञान सही तरीके से सभी के साथ साझा करें और अपने साथ साथ सभी के जीवन को आरोग्य बनाने हेतु सहयोग करें।

योग, प्राणायाम, एवं आयुर्वेद के संबंध में अधिक जानकारी के लिए संपर्क करें।

आशुतोष सिंह
मोबाइल न : +81-80-3246-4486
विपत्र : prakrti.panchtatv@gmail.com
वेबसाइट : http://prakrtipanchtatv.blogspot.in/
फेसबुक पेज: https://www.facebook.com/prakrtipanchtatv
ट्विटर: https://twitter.com/prakrtipnchtatv

बहुत धन्यवाद

जय हिन्द, जय भारत
वन्दे मातरम

皆様

いつもプラクリティパンチタトヴのブログをお読みいただき、気に入っていただきましてまことにありがとうございます。

本日はプラクリティパンチタトヴのブログが1ヶ月間になりました。それとプラクリティのフェイスブックページの「いいね」が101になりました。

いつもご協力していただましてまことにありがとうございます。

これからもインドの貴重な知識のアーユルヴェーダ、ヨーガとプラナヤムを皆様とシェアしながら健康的な人生を送っていただければと思います。

アーユルヴェーダ、ヨーガ、プラナヤムについてお問い合わせはこちら:

シン・アシュトシュ
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よろしくお願いします。

Thursday, June 12, 2014

योग परिचय

योग परिचय


योग शब्द वेदों, उपनिषदों, गीता एवं पुराणों आदि में अति पुरातन काल से व्यवहृत होता आया है। भारतीय दर्शन में योग एक अति महत्वपूर्ण शब्द है। आत्मदर्शन एवं समाधि से लेकर कर्मक्षेत्र तक योग का व्यापक व्यवहार हमारे शास्त्रों में हुआ है। योगदर्शन के उपदेष्टा महर्षि पतंजलि 'योग' शब्द का अर्थ चित्तवृत्ति का निरोध करते हैं। प्रमाण, विपर्यय, विकल्प, निद्रा एवं स्मृति ये पंचविध वृत्तियाँ जब अभ्यास एवं वैराग्यादि साधनों से मन में लय को प्राप्त हो जाती हैं और मन दृष्टा (आत्मा) के स्वरूप में अवस्थित हो जाता है, तब योग होता है। 

महर्षि व्यास योग का अर्थ समाधि करते हैं। व्याकरणशास्त्र में 'युज्' धातु से भाव में घञ प्रत्यय करने पर योग शब्द व्युत्पन्न होता है। महर्षि पाणिनि के धातुपाठ के दिवादिगण में (युज् समाधौ), रूधादिगण में (युजिर् योगे) तथा चुरादिगण में (युज् संयमने) अर्थ में 'युज्' धातु आती है। संक्षेप में हम कह सकते हैं कि संयमपूर्वक साधना करते हुए आत्मा का परमात्मा के साथ योग करके (जोड़कर) समाधि का आनंद लेना योग है। 

उपर्युक्त ऋषियों की मान्यताओं के अनुसार योग का तात्पर्य स्वचेतना और पराचेतना के मुख्य केन्द्र परमचैतन्य प्रभु के साथ संयुक्त हो जाना है। सम्यक् बोध से रागोपहती होने पर जब व्यक्ति वैराग्य के भाव से अभिभूत होता है, तब वह समस्त क्षणिक भावों, वृत्तियों से ऊपर आत्मसत्ता के संपर्क में आता है।  चित्त की पाँच अवस्थाएं हैं - क्षिप्त, मूढ़, विक्षिप्त, एकाग्र एवं निरुद्ध। इनमें से प्रथम तीन अवस्थाओं में योग एवं समाधि नहीं होती। एकाग्र एवं निरुद्ध अवस्था में अविधादि पांच क्लेशों एवं कर्म के बंधन के शिथिल होने पर क्रमश: सम्प्रज्ञात (वितर्कानुगत, विचारानुगत, आनन्दानुगत, अस्मितानुगत) और असम्प्रज्ञात समाधी (भवप्रत्ययगत एवं उपायप्रत्ययगत) की प्राप्ति होती है। 

भारतीय वाङ्मय में गीता में योगेक्ष्वर श्रीकृष्ण योग को विभिन्न अर्थों में प्रयुक्त करते हैं - अनुकूलता-प्रतिकूलता, सिद्धि-असिद्धि, सफलता-विफलता, जय-पराजय, इन समस्त भावों में आत्मस्थ रहते हुए सम रहने को योग कहते हैं। असंग भाव से द्रष्टा बनकर, अंतर की दिव्य प्रेरणा से प्रेरित होकर कुशलतापूर्वक कर्म करना ही योग है। 

जैनाचार्यों के अनुसार जिन साधनों से आत्मा की सिद्धि और मोक्ष की प्राप्ति होती है, वह योग है। पुन: जैनदर्शन में मन, वाणी एवं शरीर की वृत्तियों को भी कर्मयोग कहा गया है। 

आधुनिक योग के योगी श्रीअरविन्द के अनुसार परमदेव के साथ एकत्व की प्राप्ति के लिए प्रयत्न करना तथा इसे प्राप्त करना ही सब योगों का स्वरुप है।

- स्वामी रामदेव जी 

स्रोत:
योग साधना एवं योग चिकित्सा रहस्य - स्वामी रामदेव जी 

नोट: इस पुस्तक को खरीदने के लिए दिव्य योग मंदिर से संपर्क करें। 

Wednesday, June 11, 2014

प्राण का अर्थ एवं महत्व - १

प्राण का अर्थ एवं महत्व - १

आज हम जानेंगे की जो हम 'प्राणायाम' शब्द को सुनते या प्रयोग करते है उसमे से 'प्राण' का अर्थ आखिर है क्या।

पांच तत्वों में से एक प्रमुख तत्व वायु हमारे शरीर को जीवित रखनेवाला और वात के रूप में शरीर के तीन दोषों में से एक दोष है, जो क्ष्वास के रूप में हमारा प्राण है।


पित्त : पंगु : कफ : पंगु : पंगवो मलधातव :
वायुना यत्र नियन्ते तत्र गच्छान्ति मेघवत्।।
पवनस्तेषु बलवान विभागकारणान्मत् :।
रजोगुणमय : सूक्ष्म : शीतो रूक्षो लघुक्षचल :।। 
- शार्गंधरसंहिता ५-२५/२६ 

पित्त, कफ, देह की अन्य धातुएँ तथा मल - ये सब पंगु हैं अर्थात ये सभी शरीर में एक स्थान से दुसरे स्थान तक स्वयं नहीं जा सकते। इन्हें वायु ही जहाँ-तहाँ ले जाती है, जैसे आकाश में वायु बादलों को इधर-उधर ले जाता है। अतएव इन तीनों दोषों - वात, पित्त व कफ में वात (वायु) ही बलवान है, क्योंकि वह सब धातु, मल आदि का विभाग करनेवाला और रजोगुण से युक्त सूक्ष्म अर्थात समस्त शरीर के सूक्ष्म छिद्रों में प्रवेश करनेवाला, शीतवीर्य, रूखा, हल्का और चंचल है।     

स्रोत:

प्राणायाम रहस्य - स्वामी रामदेव जी 


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Tuesday, June 10, 2014

हल्दी भाग - १ प्रजातियाँ, बाह्म - स्वरुप, रासायनिक संघटन एवं गुण-धर्म 鬱金(ウコン)−1種類、特徴など詳細

हल्दी भाग - १ प्रजातियाँ, बाह्म - स्वरुप, रासायनिक संघटन एवं गुण-धर्म
鬱金−1種類、物理的な特徴、科学的な構成と特性

आज हम हल्दी के विभिन्न प्रजातियों के बारे में बात करेंगे। 
今回はウコンの種類についてお話します。

१. Curcuma Longa : मसालों में इसका प्रयोग करते है। 

1. Curcuma Longa (クルクマ ロンガ):マサラ(スパイス)として使います。


२. Curcuma Aromatica : इसके कन्द और पत्तो में कपूरमिश्रित आम्र की तरह गन्ध होती है। इसीलिए इसे आमाहल्दी (Mango Ginger) कहा जाता है। 

2. Curcuma Aromatica(クルクマ アロマティカ):この種類の鬱金の球根と葉っぱは樟脳(しょうのう)とマンゴーのような匂いがします。ですので「アマハルディ」(Mango Ginger)とも言われています。


३. Curcuma Zedoaria : यह बंगाल में बहुत पायी जाती है। यह रंगने के काम आती है। इसको जंगली हल्दी भी कहते है। 

3. Curcuma Zedoaria(クルクマ ゼドアリア):この種類の鬱金がベンガル州でよく有ります。この鬱金が色付けに使われ、自生鬱金(ジャンガリ鬱金)も言われています。


४. Berberis Aristata : यह दारु हरिद्रा के नाम से प्रसिद्ध है और यह हल्दी के समान गुणवाली है। इसके क्वाथ में बराबर का दूध डालकर पकाते है। जब वह चतुर्थांश रहकर गाढ़ा हो जाता है तब उसे उतार लेते है। इसी को रसांजन या रसोत कहते है। यह नेत्रों के लिए परम हितकारी है। 

4. Berberis Aristata(ベルベリス アリスタタ):「ダル ハリドラ」と言う名前で有明であり、鬱金と同じ特徴を持っています。この鬱金を煎じて同じ量の牛乳と一緒に長時間暖める。4分の1の量になります。これを「ラサンジャンとラソート」と言います。ラサンジャンが目に良いです。


बाह्म - स्वरुप

सामान्य प्रयोग में आने वाली हल्दी के पौधे २-३ फुट ऊंचे, पत्ते लम्बे भालाकार बांस के पत्तों की तरह व कुछ-कुछ केले के पत्तों की तरह होते है। पत्रों मे आम के समान गंध आती है। पुष्प पीत वर्ण के थोड़ी संख्या में पुष्प दंड लम्बा होता है। इसमें भूमिगत अदरक के समान पीले रंग के कंद पाये जाते है। जिनका रंग अंदर से लाल या पीला होता हैं भूमिगत कंदो पर मूल पर्णवृंत्तो के चिन्ह पाये जाते है। कंदो को उबालकर फिर सुखा लिया जाता है। इसे ही हल्दी कहते है तथा यही मसाले के रूप में प्रयोग में लायी जाती है।

物理的な特徴

一般的に使われている鬱金の植物は60-90センチメントの高さで、葉っぱはバンブーの矢とバナナの葉っぱにも似ています。葉っぱからマンゴーみたいな匂いがします。花は少なくて黄色のようであり、葉っぱの棒は長いです。この植物に土の中に生姜みたいな黄色の球根が有ります。球根の色が中から赤いか黄色です。土の中にある球根にपर्णवृंत्तोのマークが有ります。球根をボイルして乾かします。その後鬱金の使える形になりスパイスとして使われています。

रासायनिक संघटन

इसमें एक उड़नशील तेल ५-८ प्रतिशत होता है। इसके मुख्य कार्यशील घटक कुर्कुमिन नामक यौगिक सुगंधित तेल टर्मरिक ऑयल तथा टर्पीनाइड पदार्थ है। इनके अतिरिक्त विटामिन ए, प्रोटीन ६.३ प्रतिशत, स्नेह द्रव्य ५.१ प्रतिशत, खनिज द्रव्य ३.६ प्रतिशत तथा कार्बोहाइड्रेट ६९.४ प्रतिशत होता है।

科学的な構成

鬱金にある元素は次の通りです:
1. ウダンシール オイル:5−8%
2. メインの構成要素はクルクルミンと言う香があるターマリクオイルとターピナイドと言う元素です。
これ以外はビタミンA、タンパク質6.3%
スネハ ドラヴヤ 5.1%
鉱物性 3.6%
炭水化物 69.4%

गुण-धर्म

उष्ण वीर्य होने के कारण यह कफवात शामक, पित्तरेचक तथा वेदना स्थापन है। तिक्त होने के कारण पित्तशामक, कफघ्न, रक्त प्रसाधन, रक्तवर्धक एवं रक्त स्तम्भन है। यह रूचिवर्धक तथा अनुलोमन है। मूत्र संग्रहणीय एवं मूत्र विरंजनीय है। प्रमेह के लिए यह श्रेष्ठ है। इसका लेप शोथहर, वेदनास्थापन, वर्ण्य, कुष्ठघ्न, व्रणशोधन, व्रणरोपण, लेखन है। इसका धुआं हिक्कानिग्रहण, श्वासहर और विषघ्न है। इसका प्रयोग कफ विकार, यकृत विकार, रक्त विकार, अतिसार, प्रतिश्याय, प्रमेह, कामला, चर्मरोग एवं नेत्राभिष्यंद में किया जाता है।

特性

蒸し暑いので・カフ कफとヴァータ वात を冷静にし、ピッタ पित्त を少なくしまてवेदना(ヴェーダナ)を作ります。

महर्षि सुश्रुत के अनुसार 

१. हल्दी, दारुहल्दी, मुस्ता, यह सब आम अतिसार नाशक, खासकर दोषों का पाचन करने वाले है।
२. हल्दी, दारुहल्दी, आंवला, बहेड़ा यह सब मुस्तादिगण कफ नाशक है। योनिदोष नाशक, दूध का शोधन करने वाला और पाचन है।
३. हल्दी, दारुहल्दी, निम्ब, त्रिफला यह सब तिक्त मधुर रस, कफ पित्तरोगो को नष्ट करने वाले, कुष्ठ कृमिनाशक एवं दूषित वर्ण के शोधक है।

マハリシー・スシュルト様により

1. 鬱金(ハルディ)、ダルハルディ、ムスタなどは下痢に良いし、ドーシュを消化するのに良いです。
2. 鬱金(ハルディ)、ダルハルディ、アムラ、バヘラなどはカフを破滅したり、、ヨニドーシュを破滅したり、牛乳を洗練して消化に良いです。

स्रोत:
आयुर्वेद जड़ी - बूटी रहस्य - आचार्य बालकृष्ण जी  
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ソース:
アーユルヴェーダ ジャリ ブーティ 秘密 (ヒンディー語)ーアチャリヤ バールクリシュナ様 
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Friday, June 6, 2014

पाचन तन्त्र के लिये वरदान 消化を助ける効果

पाचन तन्त्र के लिये वरदान
消化酵素の分泌を促し、消化を助ける効果

प्रयोग करके देखें
やってみましょう!


जठराग्नि प्रदीप्त करने के लिय पाचक रस ज्यादा चाहिय। एक मीठे सेव फल में कितने भी लौंग अन्दर भौंक (अंदर तक गड़ाना) दो, फिर उसे 7 से 11 दिन तक छाया में पड़ा रहने दें। वह लौंग बन गयी पाचन तन्त्र को तेज करने वाली औषधि या टॉनिक। यह लौंग पाचन तन्त्र के लिय एकदम वरदान है। लौंग धोकर छाया में सुखा लें, और प्रयोग करें।

食べたものを消化するには、胃腸の消化酵素がたくさん必要になります。一個の甘い新鮮なリンゴにローング(クローブ)を隙間なくさして、7日ー11日間ぐらい放置すると、ローングが柔らかくなります。これを水で軽く洗って、直射日光を避けて乾かせば、オーシャディになります。このローングは消化酵素の分泌を促し、消化を助けてくれます。

मात्रा: प्रतिदिन 1-2 लौंग भोजन के 2 घंटे बाद चूसें।

使い方:毎日、食後2時間ぐらいあとに1ー2個のローングを口に含み、柔らかくなるまで口の中で溶かします。

Saturday, May 24, 2014

मिट्टी के बर्तनों का उपयोग कर भोजन को स्वादिष्ट एवं पौष्टिक बनाएं।

मिट्टी के बर्तनों का उपयोग कर भोजन को स्वादिष्ट एवं पौष्टिक बनाएं। 

मिट्टी के अंदर मौजूद १८ प्रकार के सूक्ष्म पोषक तत्व भोजन को स्वादिष्ट एवं पौष्टिक बनती है। 


हजारों वर्षों से हमारे यहाँ मिट्टी के बर्तनों का उपयोग होता आया है अभी कुछ वर्षों पूर्व तक गाँवों में वैवाहिक कार्यक्रमों में तो मिट्टी के बर्तन ही उपयोग में आते थे। घरों में दाल पकाने, दूध गर्म करने, दही जमाने, चावल बनाने और अचार रखने के लिए मिट्टी के बर्तनों का उपयोग होता रहा है। मिट्टी के बर्तन में जो भोजन पकता है उसमें सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी नहीं होती जबकि प्रेशर कुकर व अन्य बर्तनों में भोजन पकाने से सूक्ष्म पोषक तत्व कम हो जाते हैं जिससे हमारे भोजन की पौष्टिकता कम हो जाती है। भोजन को धीरे-धीरे ही पकना चाहिये तभी वह पौष्टिक और स्वादिष्ट पकेगा और उसके सभी सूक्ष्म पोषक तत्व सुरक्षित रहेंगे । 

महर्षि वागभट्ट जी के अनुसार भोजन को पकाते समय उसे सूर्य का प्रकाश और पवन का स्पर्श मिलना आवश्यक है जबकि प्रेशर कुकर में पकाते समय भोजन को ना तो सूर्य का प्रकाश और ना ही पवन का स्पर्श मिल पाता, जिससे उसके सारे पोषक तत्व क्षींण हो जाते हैं । और प्रेशर कुकर एल्यूमीनियम का बना होता है जो कि भोजन पकाने के लिये सबसे घटिया धातु है क्योंकि एल्यूमीनियम भारी धातु होती है और यह हमारे शरीर से अपशिष्ट पदार्थ के रूप में बाहर नहीं निकल पाती है । इसी कारण एल्यूमीनियम के बर्तनों का उपयोग करने से कर्इ प्रकार के गंभीर रोग होते हैं जैसे अस्थमा, वात रोग, टी.बी. मधुमेह (डायबिटीज), पक्षाघात (पेरेलिसिस), स्मरण शक्ति का कम होना आदि! वैसे भी भाप के दबाव से भोजन उबल जाता है पकता नहीं है। 

आयुर्वेद के अनुसार जो भोजन धीरे-धीरे पकता है वह भोजन सबसे अधिक पौष्टिक होता है । भोजन को शीघ्र पकाने के लिये अधिक तापमान का उपयोग करना सबसे हानिकारक है। हमारे शरीर को प्रतिदिन 18 प्रकार के सूक्ष्म पोषक तत्व चाहिए जो मिट्टी से ही आते है। जैसे- Calcium, Magnesium, Sulphur, Iron, Silicon, Cobalt, Gypsum आदि। मिट्टी के इन्ही गुणों और पवित्रता के कारण हमारे यहाँ पुरी के मंदिरों (उड़ीसा) के अलावा कर्इ मंदिरों में आज भी मिट्टी के बर्तनों में प्रसाद बनता है। अधिक जानकारी के लिए पुरी के मंदिर की रसोर्इ देखें।  

मैंने तो स्वयं अपने घर में प्रतिदिन मिट्टी की हांड़ी में सब्ज़ी, दूध आदि पकाने की शुरुवात कर दी है। 
और मेरा आपसे भी आग्रह है की एक बार आप भी अपने घर में मिट्टी की हांड़ी में सब्ज़ी पका कर देखिये आप खुद फर्क महसूस करेंगे। 

स्रोत:



Friday, May 23, 2014

प्राणायाम परिचय

・日本語下

प्राणायाम परिचय



सिद्ध योगियों व पतंज्जलि आदि ऋषि-मुनियों द्वारा प्रतिपादित प्राणायाम एक पूर्ण वैज्ञानिक पद्धति है, जिससे असाध्य रोगों से मुक्ति के साथ मन की शांति व समाधि की प्राप्ति भी होती है। आज योग के नाम पर कुछ तथाकथित योगी व्यक्ति समाज के लिए अष्टांग योग की अतिमहत्ता एवं उपयोगिता को भुलाकर मात्र आसनों का ही अधिक प्रचार-प्रसार कर रहे हैं। इससे समाज में योग के नाम पर भ्रम व्याप्त होता जा रहा है। इसके लिए महर्षि पतंज्जलि प्रतिपादित अष्टांग योग को प्रचारित करना बहुत आवश्यक है, अन्यथा योग जैसा गरिमामय अति उदात्त शब्द भी संकीर्ण-सा होकर रह जायेगा।

लाखों व्यक्तियों पर प्रयोगात्मक अनुभवों के आधार पर मेरा मानना है कि प्राणायाम का आरोग्य एवं आध्यात्मिक दोनों ही दृष्टियों से विशेष महत्व है। रोगोपचार की दृष्टि से भी हड्डी के रोगों को छोड़कर शेष सभी व्याधियाँ आसनों से नहीं, अपितु प्राणायाम से ही दूर हो सकती हैं। हृदयरोग, अस्थमा, रन्नायुरोग, वातरोग, मधुमेह आदि जटिल रोगों की प्राणायाम के बिना निवृत्ति नहीं हो सकती तथा आसन भी तभी पूर्ण लाभदायक होते हैं, जब प्राणायामपूर्वक किये जाते हैं।

प्राणायाम बालक से लेकर वृद्ध पर्यन्त सभी सहजता से कर सकते है।


- स्वामी रामदेव जी 


स्रोत:
प्राणायाम रहस्य - स्वामी रामदेव जी 

नोट: इस पुस्तक को खरीदने के लिए दिव्य योग मंदिर से संपर्क करें। 


Saturday, May 10, 2014

त्रिदोष सिद्धांत - वात, पित्त व कफ

त्रिदोष सिद्धांत - वात, पित्त व कफ

वात, पित्त एवं कफ ये तीन दोष शरीर में जाने जाते है। ये दोष यदि विकृत हो जाएं तो शरीर को हानि पहुंचाते हैं, और मृत्यू का कारन बन जाते हैं। यदि ये वात, पित्त, एवं कफ सामान्य रूप से संतुलन में रहें तो शरीर की सभी क्रियाओं का संचालन करते हुऐ शरीर का पोषण करते है यधपि ये वात, पित्त, कफ शरीर के सभी भागों में रहते हैं, लेकिन विशेष रूप से वात नाभि के नीचे वाले भाग में, पित्त नाभि और हृदय के बीच में, कफ हृदय से ऊपर वाले भाग में रहता है।



आयु के अन्त में अर्थात वृद्धावस्था में वायु (वात) का प्रकोप होता है। युवा अवस्था में पित्त का असर होता है।  बाल्य अवस्था में कफ का असर होता है। इसी तरह दिन के प्रथम पहर अर्थात सुबह के समय कफ का प्रभाव होता है दिन के मध्य में पित्त का प्रभाव होता है। दिन के अन्त में वात का प्रभाव होता है। सुबह कफ, दोपहर को पित्त और शाम को वात (वायु) का असर होता है। 

जब व्यक्ति बाल्य अवस्था में होता है, उस समय कफ की प्रधानता होती है। बचपन में मुख्य भोजन दूध होता है। बालक को अधिक चलना-फिरना नहीं होता है। बाल्य अवस्था में किसी भी तरह की चिन्ता नहीं होती है। अत: शरीर में स्निग्ध, शीत जैसे गुणों से युक्त कफ अधिक बनता है। युवा अवस्था में शरीर में धातुओं का बनना अधिक होता है, साथ ही रक्त निर्माण अधिक होता है। रक्त का निर्माण करने में पित्त की सबसे बड़ी भूमिका होती है। युवा अवस्था में शारीरिक व्यायाम भी अधिक होता है। इसी कारण भूख भी अधिक लगती है। ऐसी स्थिति में पित्त की अधिकता रहती है। युवा अवस्था में पित्त का बढ़ना बहुत ज़रूरी होता है। यदि पित्त ना बढ़े तो शरीर में रक्त की कमी हो जाएगी और शरीर को पुष्ट करने वाली धातुओं का भी निर्माण नहीं होगा। पित्त के गुण है। - तीक्षण, उष्ण।

वृद्धा अवस्था में शरीर क्षय होने लगता है। सभी धातुयें शरीर में कम होती जाती है। शरीर में रूक्षता बढ़ जाती है। ऐसी स्थिति में शरीर में वायु (वात) का प्रभाव बढ़ जाता है। वायु का गुण रूक्ष एवं गति है।

समय विभाजन के अनुसार दिन के प्रथम पहर में शीत या ठंड की अधिकता होती है। इसके कारण शरीर में थोड़ा भारीपन होता है। इसी कारण कफ में वृद्धि होती है। दिन के दूसरे पहर में और मध्यकाल में सूर्य की किरणें काफी तेज हो जाती है। गर्मी बढ़ जाती है। इस समय पित्त अधिक हो जाता है। अत: दिन के दूसरे पहर एवं मध्यकाल में पित्त प्रबल होता है। दिन के तीसरे और सांयकाल सूर्य किरणों के मन्द हो जाने के कारण वायु का प्रभाव बढ़ता है। इसी तरह रात्रि के प्रथम पहर में कफ की वृद्धि होती है। रात्रि के दूसरे पहर में वात (वायु) की वृद्धि होती है। चूंकि रात्रि के तीसरे पहर या अन्तिम पहर में वातावरण में भी शीतल वायु बहती है, अत: शरीर के इसी वायु के संपर्क में आ जाने से शरीर में भी वायु बढ़ जाती है।

इसी तरह खाने-पीने के समय का वात, पित्त, कफ के साथ्ज्ञ मेल है। खाने को खाते समय कफ की मात्रा शरीर में अधिक होती है। खाने के बाद जब भोजन के पाचन की क्रिया शुरू होती है, उस समय पित्त की प्रधानता रहती है। भोजन में पाचन के बाद वायु की प्रधानता होती है। भोजन कफ के साथ ही मिलकर आमाशय में पहुँचता है। मुंह में बनने वाली लार क्षारीय होती है। आमाशय में जो स्त्राव होता है, वह अम्लीय है। अत: भोजन को खाते समय लार भोजन के साथ मिलकर आमाशय में पहुंचती है, जहाँ उसमे अम्ल मिलता है। अम्ल और क्षार के संयोग से भोजन मधुर (मृदु) होता है। भोजन के मधुर होने से ही आमाशय में कफ की वृद्धि होती है। भोजन जब आमाशय से आगे चलता है तो फिर पित्त की क्रिया शुरू होती है। इस पित्त के बढ़ने से अग्नि प्रदीप्त होती है, जो भोजन को जलाकर रस में बदल देती है। भोजन के रस में बदल जाने के बाद ही इसमें से मांस, मज्जा, रक्त, वीर्य, मल-मूत्र आदि बनते है और इस स्तर पर वायु की अधिकता होती है। इस वायु के कारण ही मल-मूत्र का शरीर से निकलना होता है। इस तरह शरीर में प्रतिदिन प्राकृतिक रूप से वात, पित्त, कफ में वृद्धि होती रहती है। यह प्राकृतिक वृद्धि ही शरीर की रक्षा करती है। इस प्राकृतिक तरीके से होने वाली वात, पित्त, कफ की वृद्धि शरीर में बाधा उत्पन नहीं करती है,बल्कि शरीर की क्रियाओं में सहायक रूप होती है। इसके विपरीत जब गलत आहार-विहार के कारण  वात, पित्त, कफ में वृद्धि होती है,तब शरीर हो हानि होती है और बीमारियाँ होती जाती है।

यदि शरीर में वात आदि दोषों की प्रधानता होती है तो उसका जठराग्नि पर प्रभाव पड़ता है। यदि वायु विषमगति हो जाए तो, पाचन क्रिया कभी नियमित और कभी अनियमित हो जाती है। पित्त अपने तीक्षण गुणों के कारण अग्नि को तीव्र कर खाये हुऐ आहार को समय से पहले ही पचा देती है। कफ अपने मृदु गुण के कारण अग्नि को मृदु बनाकर उचित मात्रा में खाये हुऐ आहार का सम्यक पाचन नियमित समय में नहीं कर पता है। यदि वात, पित्त और कफ तीनों समान मात्रा में रहें तो उचित मात्रा में खाये हुऐ आहार का निश्चित समय से पाचन हो जाता है। 

वात की वृद्धि से मलाशय पर प्रभाव पड़ता है। मलद्वार में क्रूरता बढ़ती है। इससे मलत्याग देरी से होता है। पित्त की वृद्धि से मलाशय मृदु होता है। कफ की वृद्धि से यही मलाशय मध्ये होता है। यदि वात, पित्त, कफ समान है,तो मलाशय एवं मलद्वार मध्य होता है। 

 यदि कोई व्यक्ति वात प्रकृति का है या उसके पेट में वायु का प्रभाव बढ़ गया है तो उसका कोष्ठ क्रूर होगा। अर्थात उस व्यक्ति को मलत्याग में देरी से होगा। इसी को कोष्ठवृद्धता भी कहते है। इसको ठीक करने के लिए औषधि की ज़रूरत होती है। ऐसी औषधि जो वात को काम करे और पित्त को बढ़ाये। जैसे ही पित्त बढ़ता है,वैसे ही कोष्ठ मृदु हो जाता है। कोष्ठ मृदु हो जाये तो मलत्याग आसान हो जाता है। मलत्याग आसान करने के लिए दूध,त्रिफलाचूर्ण बहुत अच्छी औषधियाँ है। मलत्याग करना सबसे अधिक आसान तब होता है, जब  वात, पित्त, कफ समान हो या सम हो।

स्रोत:
स्वदेशी चिकित्सा - दिनचर्या-ऋतुचर्या के आधार पर (भाग - १)
संकलन एवं संपादन: राजीव दिक्षित

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हल्दी 鬱金(ウコン)

हल्दी का परिचय एवं इतिहास

हल्दी भारतीय वनस्पति है। रसोई घर में प्रयोग होने वाले मसालों में हल्दी अपना विशिष्ट स्थान रखती है। कोई भी मांगलिक कार्य बिना हल्दी के पूरा नहीं होता है। सौन्दर्य प्रसाधनों में भी इसका इस्तेमाल होता है। हल्दी की कई प्रजातियाँ पायी जाती है।

हिन्दी नाम : हल्दी
जापानी नाम : ウコン
वैज्ञानिक नाम : Curcuma longa L.

ウコンの紹介と歴史

「ウコンの力」皆様ご存知だと思います。

ウコンは、元々天竺(インド)から来たものです。主なオーシャディの一つであり、台所でいつでも見られるスパイス(オーシャディ)でもあります。あらゆる祝い事の式典(結婚、祈りなど、、、)に、ウコンは必須です。化粧品にもよく使われています。ウコンには複数の種類が有ります。

ヒンディー語名:ハルディ(हल्दी)
日本語名:鬱金(ウコン)
科学語名:Curcuma longa L.



हल्दी के औषधीय गुण

दंत चिकित्सा - हल्दी, नमक और थोड़ा सा सरसों के तैल को मिलाकर अंगुली से प्रतिदिन मसूड़ों की मालिश करना पायरिया, मुखदुर्गन्ध व दांतों के रोग में अत्यन्त लाभकारी है। 

दर्द निवारक - 1 चम्मच हल्दी पाउडर को प्रतिदिन 1 गिलास गर्म दूध के साथ पीने से शरीर की रोगप्रतिरोधक-क्षमता में वृद्धि होती है। सर्दी, जुकाम आदि नहीं होते। शरीर के दर्द, चोट व पीड़ा में भी लाभ होता है। 

गले के संक्रमण - 1/2 चम्मच हल्दी को थोड़ा भूनकर शहद से लेने से गला बैठना या खांसी में तुरन्त लाभ होता है

चोट - यदि कहीं कट या जल जाये तो हल्दी पाउडर को लगाने से रक्तस्राव बंद हो जाता है। 

मोच - शरीर में कहीं मोच आ जाये तो एक मोटी रोटी बनाकर उसमें सरसों का तैल व हल्दी डालकर गर्म रोटी को मोच वाले स्थान पर बाँधने ने सूजन व मोच में तुरन्त लाभ होता है। 

झाइयों या फुन्सियों - चेहरे की झाइयों या फुन्सियों में हल्दी व चन्दन और नीम की पत्तियों को पीसकर लगाने से फुन्सियाँ ठीक होकर चेहरे की सुन्दरता भी बढ़ाती है। 

鬱金(ウコン)の医学的な特性

歯の治療ウコン、塩とマスタードオイルを混ぜて指で毎日マッサージすることで膿漏(のうろう)、口臭と歯の他の問題が改善します。

免疫力の向上1スプーンのウコンを1グラスの牛乳に入れ、暖めて飲みます。このウコン牛乳を毎日飲むことで免疫力が向上し、風邪の予防と、咳止め効果が期待できます。また、筋肉痛、怪我などにも効果を発揮します。

喉の痛み1/2スプーンのウコンを少し焼いてから蜂蜜(ハチミツ)と一緒に飲みます。喉の痛みと咳に効果があります。

怪我(ケガ)怪我や火傷にウコンの粉をかければ止血効果があります。

捻挫(ネンザ)ロティにマスタードオイル、ウコンをつけて暖めてから、捻挫がある場所に当てて治癒を促します。

黒皮症ウコン、チャンダンとニームを混ぜて顔につけると黒皮症が治り、顔色が良くなります。