Wednesday, June 11, 2014

प्राण का अर्थ एवं महत्व - १

प्राण का अर्थ एवं महत्व - १

आज हम जानेंगे की जो हम 'प्राणायाम' शब्द को सुनते या प्रयोग करते है उसमे से 'प्राण' का अर्थ आखिर है क्या।

पांच तत्वों में से एक प्रमुख तत्व वायु हमारे शरीर को जीवित रखनेवाला और वात के रूप में शरीर के तीन दोषों में से एक दोष है, जो क्ष्वास के रूप में हमारा प्राण है।


पित्त : पंगु : कफ : पंगु : पंगवो मलधातव :
वायुना यत्र नियन्ते तत्र गच्छान्ति मेघवत्।।
पवनस्तेषु बलवान विभागकारणान्मत् :।
रजोगुणमय : सूक्ष्म : शीतो रूक्षो लघुक्षचल :।। 
- शार्गंधरसंहिता ५-२५/२६ 

पित्त, कफ, देह की अन्य धातुएँ तथा मल - ये सब पंगु हैं अर्थात ये सभी शरीर में एक स्थान से दुसरे स्थान तक स्वयं नहीं जा सकते। इन्हें वायु ही जहाँ-तहाँ ले जाती है, जैसे आकाश में वायु बादलों को इधर-उधर ले जाता है। अतएव इन तीनों दोषों - वात, पित्त व कफ में वात (वायु) ही बलवान है, क्योंकि वह सब धातु, मल आदि का विभाग करनेवाला और रजोगुण से युक्त सूक्ष्म अर्थात समस्त शरीर के सूक्ष्म छिद्रों में प्रवेश करनेवाला, शीतवीर्य, रूखा, हल्का और चंचल है।     

स्रोत:

प्राणायाम रहस्य - स्वामी रामदेव जी 


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